मां के आंचल का सुकून खो गया,ना जाने मैं कब इतना बड़ा हो गया
मां की लोरी बचपन में मुझको सुलाती थी,आज उनको याद करके आंखें भर आती थी
मां जब हाथों से खाना खिलाती थी, ना जाने तब इतनी भूख कहां से आती थी
आज तो दो रोटी भी खाकर इतनी भारी लगती हैं कभी दवाइयों से तो कभी चल कर ही पचती हैं
मां ने जब बचपन में चलना सिखाया था, गिर गिर कर ही मुझको चलना तब आया था
आज तो संभल कर भी गिर जाता हूं मैं ,थक हार कर उदास बैठ जाता हूं मैं।
मां ने जब बोलना मुझको सिखाया था, सबसे पहले मुझको मां ही बोलना आया था
आज भी वह मां ही याद आती है, जब दिल में पीड़ा या चोट लग जाती है।