मां का आंचल

मां के आंचल का सुकून खो गया,ना जाने मैं कब इतना बड़ा हो गया मां की लोरी बचपन में मुझको सुलाती थी,आज उनको याद करके आंखें भर आती थी मां जब हाथों से खाना खिलाती थी, ना जाने तब इतनी भूख कहां से आती थी आज तो दो रोटी भी खाकर इतनी भारी लगती हैंContinue reading “मां का आंचल”

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